प्रश्न 1: इनकी व्याख्या करें:
(a) ब्रिटेन में आए सामाजिक बदलावों से पाठिकाओं की संख्या में इजाफा हुआ।
उत्तर:
- अठारहवीं सदी में मध्यम वर्ग में अधिक संपन्नता आने से महिलाओं को खाली समय मिलने लगा था
- जिसका सदुपयोग वे पढ़ने लिखने के लिये कर सकती थीं।
- उपन्यासकारों ने महिलाओं के जीवन (खासकर घरेलू जीवन) पर लिखना शुरु किया।
- यह वैसा पहलू था जिसपर पुरुष लेखकों की तुलना में महिला लेखिका अधिक दक्ष साबित हुई।
- महिला उपन्यासकारों ने समाज के स्थापित मूल्यों पर सवाल उठाने शुरु किये और उन्हें तोड़ने की वकालत की।
- कई उपन्यासकारों ने समाज की कुरीतियों और पाखंडों पर भी प्रहार किया।
(b) राबिंसन क्रूसो के वे कौन से कृत्य हैं, जिनके कारण वह हमें ठेठ उपनिवेशकार दिखाई देने लगता है।
उत्तर:
- रॉबिंसन क्रूसो वह शख्स है जो दासों का व्यापार करता है। वह अश्वेत लोगों को मनुष्य नहीं मानता है और उन्हें गुलाम बनाकर रखता है। उसे किसी भी अश्वेत के नाम में कोई दिलचस्पी नहीं है इसलिए वह किसी का भी नाम फ्राइडे रख देता है। एक ठेठ उपनिवेशकार की भांति रॉबिंसन क्रूसो देसी लोगों को हेय दृष्टि से देखता है।
(c) 1740 के बाद गरीब लोग भी उपन्यास पढ़ने लगे।
उत्तर: जब 1740 के दशक में किराये वाले पुस्तकालयों का प्रचलन शुरु हुआ तो उपन्यास आम लोगों की पहुँच में आ गये। मुद्रण में कई सुधारों के साथ साथ मार्केटिंग के नये तरीकों से उपन्यास की बिक्री बढ़ी और दाम कम हुए। इसके बाद गरीब लोग भी उपन्यास पढ़ने लगे।
(d) औपनिवेशिक भारत के उपन्यासकार एक राजनैतिक उद्देश्य के लिए लिख रहे थे।
उत्तर: औपनिवेशिक भारत के कई उपन्यासकार भारत के इतिहास के उस चित्रण से संतुष्ट नहीं थे औपनिवेशी इतिहासकारों ने किया था। वे चाहते थे कि भारत के इतिहास पर भारत के लोग गर्व कर सकें और अपने आप को औपनिवेशी शासकों से कम न समझें। इसलिए हम कह सकते हैं कि औपनिवेशिक भारत के उपन्यासकार एक राजनैतिक उद्देश्य के लिए लिख रहे थे।
प्रश्न 2: तकनीक और समाज में आए उन बदलावों के बारे में बतलाइए जिनके चलते अठारहवीं सदी के यूरोप में उपन्यास पढ़ने वालों की संख्या में वृद्धि हुई।
उत्तर: यूरोप में उपन्यास पढ़ने वालों की संख्या में वृद्धि के कुछ तकनीकी और सामाजिक बदलाव निम्नलिखित हैं:
- मुद्रण तकनीक में हुए सुधारों के कारण किताबों की असंख्य प्रतियाँ छापान संभव हो गया था।
- यूरोप की साक्षरता बढ़ गई थी।
- मध्यम वर्ग की महिलाओं के पास खाली समय अब अधिक था।
- प्रकाशकों ने उपन्यासों की बिक्री बढ़ाने के कारगर तरीके निकाले।
प्रश्न 3: निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें:
(a) उड़िया उपन्यास
उत्तर: रामाशंकर ने पहले उड़िया उपन्यास को धारावाहिक के रूप में पेश करना शुरु किया। लेकिन वह इस काम को पूरा नहीं कर पाये। उसके तीस साल के भीतर उड़ीसा में फकीर मोहन सेनापति नामक एक अन्य उपन्यासकार काफी लोकप्रिय हुए। उनके उपन्यास का शीर्षक है छ: माणौ आठौ गुंठो जिसका मतलब है छ: एकड़ और बत्तीस गट्ठे जमीन। इस उपन्यास में दबंगों द्वारा जमीन हड़पने की समस्या का जिक्र है।
(b) जेन ऑस्टिन द्वारा औरतों का चित्रण
उत्तर: जेन ऑस्टिन ने अपने जमाने की संभ्रांत ग्रामीण औरतों के बारे में लिखा था। जेन ऑस्टीन के उपन्यास प्राइड एंड प्रिज्युडिश में दिखाया गया है कि कैसे संभ्रांत ग्रामीण महिला हमेशा अपने या अपनी विवाह योग्य बेटी के लिए एक अमीर वर की तलाश में लगी रहती है।
(c) उपन्यास परीक्षा गुरु में दर्शाई गई नए मध्यवर्ग की तसवीर
उत्तर: ‘परीक्षा गुरु’ नामक उपन्यास में मध्यवर्ग को ऐसी स्थिति में दिखाया गया है जिसमें पूरब और पश्चिम की संस्कृति के बीच टकराव होता है। इस उपन्यास के पात्र अंग्रेजी माध्यम से पढ़े हैं और पश्चिमी परिधान पहने हैं। लेकिन वे संस्कृत भी जानते हैं और चुटिया भी रखते हैं। आज की तरह उस समय भी लोग पश्चिमी संस्कृति की अंधी नकल करते थे। इस उपन्यास में इसी समस्या को दर्शाया गया है।
प्रश्न 4: उन्नीसवीं सदी के ब्रिटेन में आए ऐसे कुछ सामाजिक बदलावों की चर्चा करें जिनके बारे में टॉमस हार्डी और चार्ल्स डिकेंस ने लिखा है।
उत्तर: औद्योगीकरण के दौर में कई उम्मीदें जगीं तो कई बुरे परिणाम भी सामने आये। मुनाफाखोरी के चक्कर में अक्सर मजदूर का शोषण होता था। कई उपन्यासकारों ने शहरों में रहने वाले आम लोगों और श्रमिकों के जीवन पर कहानी का ताना बाना बुना।
प्रश्न 5: उन्नीसवीं सदी के यूरोप और भारत दोनों जगह उपन्यास पढ़ने वाली औरतों के बारे में जो चिंता पैदा हुई उसे संक्षेप में लिखें।
उत्तर: महिलाओं का दायरा घर तक ही सीमित था। उपन्यास के माध्यम से उन्हें बाहरी दुनिया के बारे में जानने का पता चला। उपन्यास ने उनके लिए एक नई दुनिया की खिड़की खोल दी। भारतीय महिलाओं को पढ़ने लिखने की मनाही थी और उनके साथ काफी भेदभाव होता था। यूरोप और भारत; दोनों ही स्थानों की तत्कालीन महिलाओं की सामाजिक स्थिति के बारे में दर्शाया गया है।
प्रश्न 6: औपनिवेशिक भारत में उपन्यास किस तरह उपनिवेशकारों और राष्ट्रवादियों, दोनों के लिए लाभदायक था?
उत्तर: उपनिवेशी प्रशासक अक्सर उपन्यासों के माध्यम से भारत के सामजिक ताने बाने को समझने की कोशिश करते थे। अंग्रेजी अफसरों और ईसाई प्रचारकों ने कई भारतीय उपन्यासों का अंग्रेजी में अनुवाद किया था। कुछ उपन्यासों में सामाजिक कुरीतियों और उनके उपचार के बारे में बताया गया था। कुछ उपन्यासों में इतिहास मुख्य विषय था जिससे लोगों को अपने इतिहास को बेहतर ढ़ंग से समझने में मदद मिलती थी। उपन्यास ने भाषा के आधार पर लोगों में साझा पहचान की भावना बनाने में मदद की। उपन्यास के माध्यम से लोग देश के अन्य हिस्सों की संस्कृति भी समझने लगे।
प्रश्न 7: इस बारे में बताएँ कि हमारे देश में उपन्यासों में जाति के मुद्दे को किस तरह उठाया गया। किन्हीं दो उपन्यासों का उदाहरण दें और बताएँ कि उन्होंने पाठकों को मौजूदा सामाजिक मुद्दों के बारे में सोचने को प्रेरित करने के लिए क्या प्रयास किए।
उत्तर: कई उपन्यासकारों ने नीची जाति के लोगों की दुर्दशा के बारे में लिखना शुरु किया। इसे समझने के लिए सरस्वतीविजयम नामक उपन्यास का उदाहरण लेते हैं। इस उपन्यास में नम्बूदिरी और नायर जाति के बीच के टकराव का चित्रण है। तत्कालीन केरल में नायर जाति के लोग काश्तकार की तरह नम्बूदिरी जाति के लोगों के खेतों में काम करते थे। इस कहानी में एक नायर लड़की होती है जो एक रईस लेकिन मूर्ख नम्बूदिरी लड़के से शादी करने से मना कर देती है और उसके बदले एक पढ़े लिखे नायर से शादी करती है। बाद में उसका पति सिविल सर्विस परीक्षा पास कर के अधिकारी बन जाता है। इससे यह बताने की कोशिश की गई है कि शिक्षा के सहारे कोई भी व्यक्ति सामाजिक व्यवस्था में ऊपर उठ सकता है। एक अन्य उदाहरण में बंगाली उपन्यास तीताश एकटी नदीर नाम में मल्लाहों के जीवन के बारे में लिखा गया है।
प्रश्न 8: बताइए कि भारतीय उपन्यासों में एक अखिल भारतीय जुड़ाव का अहसास पैदा करने के लिए किस तरह की कोशिशें की गई।
उत्तर: उपन्यास की लोकप्रियता समाज के हर वर्ग में थी। इसने भाषा के आधार पर लोगों मंम साझा पहचान की भावना बनाने में मदद की। उपन्यास के माध्यम से लोग देश के अन्य हिस्सों की संस्कृति भी समझने लगे। उपन्यासकारों ने अपनी रचनाओं द्वारा राष्ट्रवाद की भावना का प्रसार करने में भी मदद किया।