Rise of Nationalism In EuropeClass 10 History Chapter 1
यूरोप में राष्ट्रवाद
NCERT Solution
प्रश्न 1: निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें
(a) ज्युसेपे मेत्सिनी
उत्तर: ज्युसेपे मेत्सिनी इटली के एक क्रांतिकारी थे। उनका जन्म 1807 में हुआ था। वह कार्बोनारी के सेक्रेट सोसायटी के सदस्य बन गये थे। जब वह 24 वर्ष के थे तभी उनको 1931 लिगुरिया में क्रांति की कोशिश के आरोप में देशनिकाला दे दिया गया था। उसके बाद उन्होंने दो और गुप्त सोसायटी की स्थापना की; पहले मार्सेई में यंग इटली के नाम से और फिर बाद में बर्न में यंग यूरोप के नाम से। मेत्सिनी का मानना था कि भगवान ने राष्ट्र को ही मनुष्यों की प्राकृतिक इकाई बनाया था। इसलिए इटली को एक एकीकृत गणराज्य बनाना जरूरी था। मेत्सिनी का अनुसरण करते हुए जर्मनी, स्विट्जरलैंड और पोलैंड में कई गुप्त संगठन बनाये गये। रुढ़िवादी लोगों में मेत्सिनी के नाम का खौफ था।
(b) काउंट कैमिली दे कावूर
उत्तर: इटली के एकीकरण में काउंट कैमिली दे कावूर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वह पिडमॉंट सार्डीनिया के प्राइम मिनिस्टर थे। वह न तो कोई क्रांतिकारी थे और न ही लोकतांत्रिक। इटली के कई अन्य अभिजात वर्ग के लोगों की तरह वह धनी और सुशिक्षित थे। उनकी भी पकड़ इतालवी भाषा के मुकाबले फ्रेंच भाषा पर अधिक थी। कैवर ने फ्रांस से एक कूटनीतिक गठबंधन किया और 1859 में ऑस्ट्रिया की सेना को हरा दिया। उस लड़ाई में सैनिकों के अलावा कई सशस्त्र स्वयंसेवकों ने भी भाग लिया था जिनकी अगुवाई जिउसेपे गैरीबाल्डी कर रहे थे। सन 1869 की मार्च के महीने में वे दक्षिण इटली और ट्रू सिसली के राज्य को ओर बढ़े। उन्होंने स्थानीय किसानों का समर्थन जीता और फिर स्पैनिश शासकों को सत्ता से हटा दिया। 1861 में विक्टर एमानुयेल को एकीकृत इटली का राजा घोषित किया गया। कावूर उस एकीकृत इटली के प्राइम मिनिस्टर बन गये।
(c) यूनानी स्वतंत्रता युद्ध
उत्तर: ग्रीस की आजादी का संघर्ष 1821 में शुरु हुआ था। जिन लोगों को देशनिकाला दे दिया गया था उन्होंने ग्रीस के राष्ट्रवादियों को भारी समर्थन दिया। पश्चिमी यूरोप के लोग प्राचीन ग्रीक संस्कृति का सम्मान करते थे, इसलिए उन्होंने भी ग्रीस के राष्ट्रवादियों का समर्थन किया। कवियों और कलाकारों ने जन भावना को राष्ट्रवादियों के पक्ष में करने की भरपूर कोशिश की। यह याद रखना चाहिए कि ग्रीस उस समय ऑटोमन साम्राज्य का एक हिस्सा हुआ करता था। आखिरकार 1832 में कॉन्स्टैंटिनोपल की ट्रीटी हुई और ग्रीस को एक स्वतंत्र देश की मान्यता मिल गई। ग्रीस की आजादी की लड़ाई से पूरे यूरोप के पढ़े लिखे वर्ग में राष्ट्रवाद की भावना और मजबूत हुई।
(d) फ्रैंकफर्ट संसद
उत्तर: फ्रैंकफर्ट पार्लियामेंट का नाम राष्ट्रवाद के आंदोलन के एक मुख्य पड़ाव के रूप में गिना जाता है। जर्मनी में मध्यम वर्गीय लोगों के राजनैतिक संगठनों के सदस्यों ने मिलकर एक सकल जर्मन एसेंबली के लिये वोट किया और 18 मई 1848 को 831 चुने प्रतिनिधियों का जुलूस सेंट पॉल के चर्च में आयोजित फ्रैंकफर्ट पार्लियामेंट की ओर चल पड़े। उस पार्लियामेंट में एक जर्मन राष्ट्र का संविधान बनाया गया और उस संविधान के अनुसार प्रसिया के राजा फ्रेडरिक विल्हेम (चतुर्थ) को जर्मनी का शासन सौंपने की पेशकश की गई। लेकिन उसने इस अनुरोध को ठुकरा दिया और उस चुनी हुई संसद का विरोध करने के लिए अन्य राजाओं से हाथ मिला लिया।
(e) राष्ट्रवादी संघर्षों में महिलाओं की भूमिका
उत्तर: उदारवादी आंदोलन में महिलाओं ने भी भारी संख्या में हिस्सा लिया। इसके बावजूद, एसेंबली के चुनाव में उन्हें मताधिकार से वंचित किया गया। जब सेंट पॉल के चर्च में फ्रैंकफर्ट पार्लियामेंट बुलाई गई तो महिलाओं को केवल दर्शक दीर्घा में बैठने की अनुमति मिली।
प्रश्न 2: फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के लिए फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने क्या कदम उठाए?
उत्तर: फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के लिए फ्रांसीसी क्रांतिकारियो ने कई कदम उठाए। उन्होंने इसके लिए रोमांटिसिज्म का सहारा लिया। रोमांटिसिज्म एक सांस्कृतिक आंदोलन था जो एक खास तरह की राष्ट्रवादी भावना का विकास करना चाहता था। रोमांटिक कलाकार सामान्यतया तर्क और विज्ञान को बढ़ावा देने के खिलाफ होते थे। इसके बदले वे भावनाओं, अंतर्ज्ञान और रहस्यों अधिक महत्व देते थे। राष्ट्र के आधार के रूप में उन्होंने साझा विरासत और सांस्कृतिक धरोहर की भावना को अधिक बल दिया। राष्ट्रवादी भावनाओं को बल देने में भाषा ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लोगों में राष्ट्र की भावना को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पूरे फ्रांस में फ्रेंच भाषा को मुख्य भाषा की तरह बढ़ावा दिया गया। पोलैंड में रूसी आधिपत्य के खिलाफ विरोध के लिए पॉलिश भाषा का इस्तेमाल एक हथियार के रूप में किया गया।
प्रश्न 3: मारीआन और जर्मेनिया कौन थे? जिस तरह उन्हें किया गया उसका क्या महत्व था?
उत्तर: फ्रेंच राष्ट्र को मारिआन का नाम दिया गया जिसे एक स्त्री के रुप में चित्रित किया गया। फ्रांस में राष्ट्र को मैरियेन का नाम दिया गया। यह ध्यान देने योग्य है कि मैरियेन इसाई महिलाओं का एक लोकप्रिय नाम है। मैरियेन के चरित्र चित्रण के लिए उदारवाद और प्रजातंत्र के रूपकों का प्रयोग हुआ, जैसे लाल टोपी, तिरंगा, कलगी, आदि। लोगों में मैरियेन की पहचान घर करने के उद्देश्य से उसकी मूर्तियाँ बनीं और टिकटों और सिक्कों पर उसकी तस्वीर छापी गई। जर्मनी में जर्मेनिया को राष्ट्र का प्रतीक बनाया गया। जर्मनी में जैतून को बहादुरी का प्रतीक माना जाता है, इसलिए जर्मेनिया के सिर पर जैतून के पत्तों का ताज है।
प्रश्न 4: जर्मन एकीकरण की प्रक्रिया का संक्षेप में पता लगाएँ।
उत्तर: 1814 के वियेना कॉन्ग्रेस में जर्मनी की पहचान 39 राज्यों के एक लचर संघ के रूप में हुई थी। इस संघटण का निर्माण नेपोलियन द्वारा पहले ही किया गया था। 1848 के मई महीने में फ्रैंकफर्ट संसद में विभिन्न राजनैतिक संगठनों ने हिस्सा लिया। उन्होंने एक जर्मन राष्ट्र के लिये एक संविधान की रचना की। उसके अनुसार जर्मन राष्ट्र का मुखिया कोई राजा होता तो संसद के प्रति जवाबदेह होता। ऑट्टो वॉन बिस्मार्क जो प्रसिया के मुख्यमंत्री थे जर्मन एकीकरण के मुख्य सूत्रधार थे। इस काम के लिए उन्होने प्रसिया की सेना और अफसरशाही की मदद ली थी। उसके बाद ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और फ्रांस से सात साल के भीतर तीन लड़ाइयाँ हुईं। उन युद्धों की परिणति हुई प्रसिया की जीत मे जिसने जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया को संपूर्ण किया। 1871 के जनवरी महीने में वर्साय में हुए एक समारोह में प्रशा के राजा विलियम 1 को जर्मनी का शहंशाह घोषित किया गया।
प्रश्न 5: अपने शासन वाले क्षेत्रों में शासन व्यवस्था को ज्यादा कुशल बनाने के लिए नेपोलियन ने क्या बदलाव किए?
उत्तर: शासन व्यवस्था को अधिक कुशन बनाने के लिए नेपोलियन ने कई बदलाव किये। नेपोलियन ने 1804 में सिविल कोड लागू किया, जिसे नेपोलियन कोड भी कहा जाता है। इस नये सिविल कोड से जन्म के आधार पर मिलने वाली हर सुविधा समाप्त हो गई। हर नागरिक को समान दर्जा मिला और संपत्ति के अधिकार को पुख्ता किया गया। नेपोलियन ने फ्रांस की तरह अपने नियंत्रण वाले हर इलाके में प्राशासनिक सुधार को अंजाम दिया। उसने सामंती व्यवस्था को खत्म किया, जिससे किसानों को दासता और जागीर को दिये जाने वाले शुल्कों से मुक्त किया गया। शहरों में प्रचलित शिल्प मंडलियों द्वारा लगाई गई पाबंदियों को भी समाप्त किया गया। यातायात और संचार के साधनों में सुधार किये गये।
प्रश्न 6: उदारवादियों की 1848 की क्रांति का क्या अर्थ लगाया जाता है? उदारवादियों ने किन राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विचारों को बढ़ावा दिया?
उत्तर: उन्नीसवीं सदी के शुरुआती दौर के यूरोप में राष्ट्रवाद की भावना पर उदारवाद का गहरा प्रभाव था। एक नये मध्यम वर्ग के लिए उदारवाद का मतलब था व्यक्तिगत स्वतंत्रता और कानून के समक्ष सबकी समानता।
राजनैतिक और सामाजिक दृष्टिकोण: सउदारवाद का राजनैतिक दृष्टिकोण था आम सहमति से सरकार चलाना। यह तानाशाही के अंत और पादरियों को मिलने वाले विशेषाधिकार की समाप्ति का पक्षधर था। एक संविधान और प्रतिनिधि पर आधारित सरकार की जरूरत भी महसूस की गई। उदारवादियों ने निजी संपत्ति के अधिकार की भी वकालत की।
आर्थिक दृष्टिकोण: आर्थिक उदारवाद नेपोलियन कोड की कई विशेषताओं में से एक थी। नवोदित मध्यम वर्ग भी आर्थिक उदारवाद के पक्षधर था। कई तरह की मुद्राएँ, माप तौल के कई मानक और ट्रेड बैरियर आर्थिक गतिविधियों में रोड़े अटका रहे थे। नया व्यवसायी वर्ग एक ऐसे एकीकृत आर्थिक इलाके की माँग कर रहा था जिससे माल, लोग और पूँजी का प्रवाह निर्बाध रूप से चलता रहे।
प्रश्न 7: यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति के योगदान को दर्शाने के लिए तीन उदाहरण दें।
उत्तर: यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति के योगदान के तीन उदाहरण निम्नलिखित हैं:- फ्रांस में एक ही भाषा को बढ़ावा देने की नीति
- रूसी आधिपत्य के खिलाफ पोलैंड में पॉलिश भाषाका इस्तेमाल
- जर्मनी में साझा संस्कृति को बढ़ावा देना
प्रश्न 8: किन्हीं दो देशों पर ध्यान केंद्रित करते हुए बताएँ कि उन्नीसवीं सदी में राष्ट्र किस प्रकार विकसित हुए।
उत्तर: इसे दर्शाने के लिए इटली और यूनान के उदाहरण सटीक बैठते हैं। इटली में कावूर के प्रयासों के कारण इटली एक राष्ट्र बन पाया। यूनान में ऐतिहासिक ग्रीस संस्कृति और ऑट्टोमन साम्राज्य की इस्लामी संस्कृति के अंतरों का हवाला दिया गया। ग्रीस संस्कृति के पक्षधर कई लोगों ने ग्रीस के संघर्ष का समर्थन किया जिससे ग्रीस की आजादी में काफी सहायता मिली। अधिकतर मामलों में एक साझा संस्कृति का इतिहास, शक्तिशाली लोगों द्वारा गरीबों का उत्पीड़न और उदारवाद का जन्म ने ऐसे उत्प्रेरक का काम किया जिसने लोगों में राष्ट्रवाद की भावना को घर बनाने में मदद किया।
प्रश्न 9: ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का इतिहास शेष यूरोप की तुलना में किस प्रकार भिन्न था?
उत्तर: यूरोप के अन्य भागों की तुलना में यूरोप में राष्ट्रवाद का विकास कुछ अलग तरह से हुआ था। अठारहवीं सदी से पहले ब्रिटिश द्वीप अलग-अलग नस्लों में बँटे हुए थे जिनकी अलग-अलग सांस्कृतिक और राजनैतिक परंपरा था; जैसे कि इंगलिश, वेल्श, स्कॉट या आइरिस। इंग्लिश राष्ट्र के धन, संपदा, महत्व और ताकत में वृद्धि होने के साथ-साथ ब्रिटिश द्वीपसमूहों के अन्य राष्ट्रों पर इंग्लिश राष्ट्र का प्रभुत्व बढ़ रहा था। एक लंबे झगड़े के बाद इंगलिश पार्लियामेंट ने 1688 में राजपरिवार से सत्ता ले ली। ब्रिटेन के राष्ट्रों के निर्माण में इंग्लिश पार्लियामेंट की अहम भूमिका रही है। 1707 में इंगलैंड और स्कॉटलैंड के बीच यूनियन ऐक्ट बना जिसके परिणामस्वरूप “यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन” की स्थापना हुई। अपनी वित्तीय ताकत के कारण इंगलैंड ब्रिटिश द्वीपों के अन्य राष्ट्रों पर बीस पड़ता था। इसके कारण एक ऐसे यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन का निर्माण हुआ जिसमें इंगलैंड एक हावी सदस्य था और अन्य नस्ल के लोगों को इंग्लिश संस्कृति द्वारा दबा दिया गया।
प्रश्न 10: बाल्कन प्रदेशों में राष्ट्रवादी तनाव क्यों पनपा?
उत्तर: बाल्कन का एक बड़ा हिस्सा ओटोमन साम्राज्य के नियंत्रण में था। लेकिन वह ऐसा दौर था जब ओटोमन साम्राज्य बिखर रहा था और बाल्कन में रोमांटिक राष्ट्रवादी भावना बढ़ रही थी। पूरी उन्नीसवीं सदी के दौरान ओटोमन साम्राज्य ने आधुनिकीकरण और आंतरिक सुधारों के द्वारा अपनी ताकत बढ़ाने की असफल कोशिश की थी। एक एक करके ऑटोमन के अधीनस्थ यूरोपीय देश अलग होते गये और अपनी आजादी की घोषणा करते गये। लेकिन उस प्रक्रिया के दौरान यह क्षेत्र कई गंभीर झगड़ों का अखाड़ा बन चुका था। बाल्कन पर नियंत्रण पाने का उद्देश्य भी इन झगड़ों में शामिल था।
National Flag of India
प्रश्न 1: निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें
(a) ज्युसेपे मेत्सिनी
उत्तर: ज्युसेपे मेत्सिनी इटली के एक क्रांतिकारी थे। उनका जन्म 1807 में हुआ था। वह कार्बोनारी के सेक्रेट सोसायटी के सदस्य बन गये थे। जब वह 24 वर्ष के थे तभी उनको 1931 लिगुरिया में क्रांति की कोशिश के आरोप में देशनिकाला दे दिया गया था। उसके बाद उन्होंने दो और गुप्त सोसायटी की स्थापना की; पहले मार्सेई में यंग इटली के नाम से और फिर बाद में बर्न में यंग यूरोप के नाम से। मेत्सिनी का मानना था कि भगवान ने राष्ट्र को ही मनुष्यों की प्राकृतिक इकाई बनाया था। इसलिए इटली को एक एकीकृत गणराज्य बनाना जरूरी था। मेत्सिनी का अनुसरण करते हुए जर्मनी, स्विट्जरलैंड और पोलैंड में कई गुप्त संगठन बनाये गये। रुढ़िवादी लोगों में मेत्सिनी के नाम का खौफ था।
(b) काउंट कैमिली दे कावूर
उत्तर: इटली के एकीकरण में काउंट कैमिली दे कावूर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वह पिडमॉंट सार्डीनिया के प्राइम मिनिस्टर थे। वह न तो कोई क्रांतिकारी थे और न ही लोकतांत्रिक। इटली के कई अन्य अभिजात वर्ग के लोगों की तरह वह धनी और सुशिक्षित थे। उनकी भी पकड़ इतालवी भाषा के मुकाबले फ्रेंच भाषा पर अधिक थी। कैवर ने फ्रांस से एक कूटनीतिक गठबंधन किया और 1859 में ऑस्ट्रिया की सेना को हरा दिया। उस लड़ाई में सैनिकों के अलावा कई सशस्त्र स्वयंसेवकों ने भी भाग लिया था जिनकी अगुवाई जिउसेपे गैरीबाल्डी कर रहे थे। सन 1869 की मार्च के महीने में वे दक्षिण इटली और ट्रू सिसली के राज्य को ओर बढ़े। उन्होंने स्थानीय किसानों का समर्थन जीता और फिर स्पैनिश शासकों को सत्ता से हटा दिया। 1861 में विक्टर एमानुयेल को एकीकृत इटली का राजा घोषित किया गया। कावूर उस एकीकृत इटली के प्राइम मिनिस्टर बन गये।
(c) यूनानी स्वतंत्रता युद्ध
उत्तर: ग्रीस की आजादी का संघर्ष 1821 में शुरु हुआ था। जिन लोगों को देशनिकाला दे दिया गया था उन्होंने ग्रीस के राष्ट्रवादियों को भारी समर्थन दिया। पश्चिमी यूरोप के लोग प्राचीन ग्रीक संस्कृति का सम्मान करते थे, इसलिए उन्होंने भी ग्रीस के राष्ट्रवादियों का समर्थन किया। कवियों और कलाकारों ने जन भावना को राष्ट्रवादियों के पक्ष में करने की भरपूर कोशिश की। यह याद रखना चाहिए कि ग्रीस उस समय ऑटोमन साम्राज्य का एक हिस्सा हुआ करता था। आखिरकार 1832 में कॉन्स्टैंटिनोपल की ट्रीटी हुई और ग्रीस को एक स्वतंत्र देश की मान्यता मिल गई। ग्रीस की आजादी की लड़ाई से पूरे यूरोप के पढ़े लिखे वर्ग में राष्ट्रवाद की भावना और मजबूत हुई।
(d) फ्रैंकफर्ट संसद
उत्तर: फ्रैंकफर्ट पार्लियामेंट का नाम राष्ट्रवाद के आंदोलन के एक मुख्य पड़ाव के रूप में गिना जाता है। जर्मनी में मध्यम वर्गीय लोगों के राजनैतिक संगठनों के सदस्यों ने मिलकर एक सकल जर्मन एसेंबली के लिये वोट किया और 18 मई 1848 को 831 चुने प्रतिनिधियों का जुलूस सेंट पॉल के चर्च में आयोजित फ्रैंकफर्ट पार्लियामेंट की ओर चल पड़े। उस पार्लियामेंट में एक जर्मन राष्ट्र का संविधान बनाया गया और उस संविधान के अनुसार प्रसिया के राजा फ्रेडरिक विल्हेम (चतुर्थ) को जर्मनी का शासन सौंपने की पेशकश की गई। लेकिन उसने इस अनुरोध को ठुकरा दिया और उस चुनी हुई संसद का विरोध करने के लिए अन्य राजाओं से हाथ मिला लिया।
(e) राष्ट्रवादी संघर्षों में महिलाओं की भूमिका
उत्तर: उदारवादी आंदोलन में महिलाओं ने भी भारी संख्या में हिस्सा लिया। इसके बावजूद, एसेंबली के चुनाव में उन्हें मताधिकार से वंचित किया गया। जब सेंट पॉल के चर्च में फ्रैंकफर्ट पार्लियामेंट बुलाई गई तो महिलाओं को केवल दर्शक दीर्घा में बैठने की अनुमति मिली।
प्रश्न 2: फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के लिए फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने क्या कदम उठाए?
उत्तर: फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के लिए फ्रांसीसी क्रांतिकारियो ने कई कदम उठाए। उन्होंने इसके लिए रोमांटिसिज्म का सहारा लिया। रोमांटिसिज्म एक सांस्कृतिक आंदोलन था जो एक खास तरह की राष्ट्रवादी भावना का विकास करना चाहता था। रोमांटिक कलाकार सामान्यतया तर्क और विज्ञान को बढ़ावा देने के खिलाफ होते थे। इसके बदले वे भावनाओं, अंतर्ज्ञान और रहस्यों अधिक महत्व देते थे। राष्ट्र के आधार के रूप में उन्होंने साझा विरासत और सांस्कृतिक धरोहर की भावना को अधिक बल दिया। राष्ट्रवादी भावनाओं को बल देने में भाषा ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लोगों में राष्ट्र की भावना को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पूरे फ्रांस में फ्रेंच भाषा को मुख्य भाषा की तरह बढ़ावा दिया गया। पोलैंड में रूसी आधिपत्य के खिलाफ विरोध के लिए पॉलिश भाषा का इस्तेमाल एक हथियार के रूप में किया गया।
प्रश्न 3: मारीआन और जर्मेनिया कौन थे? जिस तरह उन्हें किया गया उसका क्या महत्व था?
उत्तर: फ्रेंच राष्ट्र को मारिआन का नाम दिया गया जिसे एक स्त्री के रुप में चित्रित किया गया। फ्रांस में राष्ट्र को मैरियेन का नाम दिया गया। यह ध्यान देने योग्य है कि मैरियेन इसाई महिलाओं का एक लोकप्रिय नाम है। मैरियेन के चरित्र चित्रण के लिए उदारवाद और प्रजातंत्र के रूपकों का प्रयोग हुआ, जैसे लाल टोपी, तिरंगा, कलगी, आदि। लोगों में मैरियेन की पहचान घर करने के उद्देश्य से उसकी मूर्तियाँ बनीं और टिकटों और सिक्कों पर उसकी तस्वीर छापी गई। जर्मनी में जर्मेनिया को राष्ट्र का प्रतीक बनाया गया। जर्मनी में जैतून को बहादुरी का प्रतीक माना जाता है, इसलिए जर्मेनिया के सिर पर जैतून के पत्तों का ताज है।
प्रश्न 4: जर्मन एकीकरण की प्रक्रिया का संक्षेप में पता लगाएँ।
उत्तर: 1814 के वियेना कॉन्ग्रेस में जर्मनी की पहचान 39 राज्यों के एक लचर संघ के रूप में हुई थी। इस संघटण का निर्माण नेपोलियन द्वारा पहले ही किया गया था। 1848 के मई महीने में फ्रैंकफर्ट संसद में विभिन्न राजनैतिक संगठनों ने हिस्सा लिया। उन्होंने एक जर्मन राष्ट्र के लिये एक संविधान की रचना की। उसके अनुसार जर्मन राष्ट्र का मुखिया कोई राजा होता तो संसद के प्रति जवाबदेह होता। ऑट्टो वॉन बिस्मार्क जो प्रसिया के मुख्यमंत्री थे जर्मन एकीकरण के मुख्य सूत्रधार थे। इस काम के लिए उन्होने प्रसिया की सेना और अफसरशाही की मदद ली थी। उसके बाद ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और फ्रांस से सात साल के भीतर तीन लड़ाइयाँ हुईं। उन युद्धों की परिणति हुई प्रसिया की जीत मे जिसने जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया को संपूर्ण किया। 1871 के जनवरी महीने में वर्साय में हुए एक समारोह में प्रशा के राजा विलियम 1 को जर्मनी का शहंशाह घोषित किया गया।
प्रश्न 5: अपने शासन वाले क्षेत्रों में शासन व्यवस्था को ज्यादा कुशल बनाने के लिए नेपोलियन ने क्या बदलाव किए?
उत्तर: शासन व्यवस्था को अधिक कुशन बनाने के लिए नेपोलियन ने कई बदलाव किये। नेपोलियन ने 1804 में सिविल कोड लागू किया, जिसे नेपोलियन कोड भी कहा जाता है। इस नये सिविल कोड से जन्म के आधार पर मिलने वाली हर सुविधा समाप्त हो गई। हर नागरिक को समान दर्जा मिला और संपत्ति के अधिकार को पुख्ता किया गया। नेपोलियन ने फ्रांस की तरह अपने नियंत्रण वाले हर इलाके में प्राशासनिक सुधार को अंजाम दिया। उसने सामंती व्यवस्था को खत्म किया, जिससे किसानों को दासता और जागीर को दिये जाने वाले शुल्कों से मुक्त किया गया। शहरों में प्रचलित शिल्प मंडलियों द्वारा लगाई गई पाबंदियों को भी समाप्त किया गया। यातायात और संचार के साधनों में सुधार किये गये।
प्रश्न 6: उदारवादियों की 1848 की क्रांति का क्या अर्थ लगाया जाता है? उदारवादियों ने किन राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विचारों को बढ़ावा दिया?
उत्तर: उन्नीसवीं सदी के शुरुआती दौर के यूरोप में राष्ट्रवाद की भावना पर उदारवाद का गहरा प्रभाव था। एक नये मध्यम वर्ग के लिए उदारवाद का मतलब था व्यक्तिगत स्वतंत्रता और कानून के समक्ष सबकी समानता।
राजनैतिक और सामाजिक दृष्टिकोण: सउदारवाद का राजनैतिक दृष्टिकोण था आम सहमति से सरकार चलाना। यह तानाशाही के अंत और पादरियों को मिलने वाले विशेषाधिकार की समाप्ति का पक्षधर था। एक संविधान और प्रतिनिधि पर आधारित सरकार की जरूरत भी महसूस की गई। उदारवादियों ने निजी संपत्ति के अधिकार की भी वकालत की।
आर्थिक दृष्टिकोण: आर्थिक उदारवाद नेपोलियन कोड की कई विशेषताओं में से एक थी। नवोदित मध्यम वर्ग भी आर्थिक उदारवाद के पक्षधर था। कई तरह की मुद्राएँ, माप तौल के कई मानक और ट्रेड बैरियर आर्थिक गतिविधियों में रोड़े अटका रहे थे। नया व्यवसायी वर्ग एक ऐसे एकीकृत आर्थिक इलाके की माँग कर रहा था जिससे माल, लोग और पूँजी का प्रवाह निर्बाध रूप से चलता रहे।
प्रश्न 7: यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति के योगदान को दर्शाने के लिए तीन उदाहरण दें।
उत्तर: यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति के योगदान के तीन उदाहरण निम्नलिखित हैं:- फ्रांस में एक ही भाषा को बढ़ावा देने की नीति
- रूसी आधिपत्य के खिलाफ पोलैंड में पॉलिश भाषाका इस्तेमाल
- जर्मनी में साझा संस्कृति को बढ़ावा देना
प्रश्न 8: किन्हीं दो देशों पर ध्यान केंद्रित करते हुए बताएँ कि उन्नीसवीं सदी में राष्ट्र किस प्रकार विकसित हुए।
उत्तर: इसे दर्शाने के लिए इटली और यूनान के उदाहरण सटीक बैठते हैं। इटली में कावूर के प्रयासों के कारण इटली एक राष्ट्र बन पाया। यूनान में ऐतिहासिक ग्रीस संस्कृति और ऑट्टोमन साम्राज्य की इस्लामी संस्कृति के अंतरों का हवाला दिया गया। ग्रीस संस्कृति के पक्षधर कई लोगों ने ग्रीस के संघर्ष का समर्थन किया जिससे ग्रीस की आजादी में काफी सहायता मिली। अधिकतर मामलों में एक साझा संस्कृति का इतिहास, शक्तिशाली लोगों द्वारा गरीबों का उत्पीड़न और उदारवाद का जन्म ने ऐसे उत्प्रेरक का काम किया जिसने लोगों में राष्ट्रवाद की भावना को घर बनाने में मदद किया।
प्रश्न 9: ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का इतिहास शेष यूरोप की तुलना में किस प्रकार भिन्न था?
उत्तर: यूरोप के अन्य भागों की तुलना में यूरोप में राष्ट्रवाद का विकास कुछ अलग तरह से हुआ था। अठारहवीं सदी से पहले ब्रिटिश द्वीप अलग-अलग नस्लों में बँटे हुए थे जिनकी अलग-अलग सांस्कृतिक और राजनैतिक परंपरा था; जैसे कि इंगलिश, वेल्श, स्कॉट या आइरिस। इंग्लिश राष्ट्र के धन, संपदा, महत्व और ताकत में वृद्धि होने के साथ-साथ ब्रिटिश द्वीपसमूहों के अन्य राष्ट्रों पर इंग्लिश राष्ट्र का प्रभुत्व बढ़ रहा था। एक लंबे झगड़े के बाद इंगलिश पार्लियामेंट ने 1688 में राजपरिवार से सत्ता ले ली। ब्रिटेन के राष्ट्रों के निर्माण में इंग्लिश पार्लियामेंट की अहम भूमिका रही है। 1707 में इंगलैंड और स्कॉटलैंड के बीच यूनियन ऐक्ट बना जिसके परिणामस्वरूप “यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन” की स्थापना हुई। अपनी वित्तीय ताकत के कारण इंगलैंड ब्रिटिश द्वीपों के अन्य राष्ट्रों पर बीस पड़ता था। इसके कारण एक ऐसे यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन का निर्माण हुआ जिसमें इंगलैंड एक हावी सदस्य था और अन्य नस्ल के लोगों को इंग्लिश संस्कृति द्वारा दबा दिया गया।
प्रश्न 10: बाल्कन प्रदेशों में राष्ट्रवादी तनाव क्यों पनपा?
उत्तर: बाल्कन का एक बड़ा हिस्सा ओटोमन साम्राज्य के नियंत्रण में था। लेकिन वह ऐसा दौर था जब ओटोमन साम्राज्य बिखर रहा था और बाल्कन में रोमांटिक राष्ट्रवादी भावना बढ़ रही थी। पूरी उन्नीसवीं सदी के दौरान ओटोमन साम्राज्य ने आधुनिकीकरण और आंतरिक सुधारों के द्वारा अपनी ताकत बढ़ाने की असफल कोशिश की थी। एक एक करके ऑटोमन के अधीनस्थ यूरोपीय देश अलग होते गये और अपनी आजादी की घोषणा करते गये। लेकिन उस प्रक्रिया के दौरान यह क्षेत्र कई गंभीर झगड़ों का अखाड़ा बन चुका था। बाल्कन पर नियंत्रण पाने का उद्देश्य भी इन झगड़ों में शामिल था।
National Flag of India |
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भारत में राष्ट्रवाद
NCERT Solution
प्रश्न 1: व्याख्या करें:
(a) उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई क्यों थी?
उत्तर: उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन ने लोगों एक ऐसा माध्यम दिया जिससे विविध प्रकार के लोग एकता के सूत्र में बंध पाये। इसलिए हम कह सकते हैं कि उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई थी।
(b) पहले विश्व युद्ध ने भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में किस प्रकार योगदान दिया?
उत्तर: प्रथम विश्व युद्ध में भारत प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं था, लेकिन इंगलैंड तो सीधे रूप से उस युद्ध में भाग ले रहा था। इसका असर भारत पर पड़ना स्वाभाविक था। युद्ध से होने वाले रक्षा खर्चे में हुई वृद्धि को पूरा करने के लिये इंगलैंड ने कर्ज लिये और कई टैक्स बढ़ाये। अधिक राजस्व संग्रह के उद्देश्य से सीमा शुल्क को बढ़ाया गया और आय कर को शुरु किया गया। इन सब कारणों से 1913 से 1918 के बीच अधिकतर चीजों के दाम दोगुने हो गये। कीमतें बढ़ने से आम आदमी की मुसीबतें बढ़ गई। प्रथम विश्व युद्ध में लड़ने के लिए लोगों को सेना में जबरन भर्ती किया गया, जिससे ग्रामीण इलाकों में बहुत आक्रोश था।
(c) भारत के लोग रॉलट एक्ट के विरोध में क्यों थे?
उत्तर: यह ऐक्ट इसलिये बनाया गया था ताकि सरकार के पास राजनैतिक गतिविधियों को कुचलने के लिए असीम शक्ति मिल जाये। रॉलैट ऐक्ट के अनुसार राजनैतिक कैदियों को बिना ट्रायल के ही दो साल तक के लिये कैद किया जा सकता था। इसलिए भारत के लोग रॉलट एक्ट के खिलाफ थे।
(d) गांधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला क्यों लिया?
उत्तर: 1921 के अंत आते आते, कई स्थानों पर आंदोलन नियंत्रण से बाहर हो चुका था और हिंसक रूप लेने लगा था। इसलिए फरवरी 1922 में गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का निर्णय ले लिया।
प्रश्न 2: सत्याग्रह के विचार का क्या मतलब है?
उत्तर: महात्मा गांधी ने जनांदोलन के लिये सत्याग्रह नाम का नया तरीका इजाद किया। सत्याग्रह का मतलब है कि अगर आप सही मकसद के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं तो आपको अपने ऊपर अत्याचार करने वाले से लड़ने के लिये ताकत की जरूरत नहीं होती है। गांधीजी का दृढ़ विश्वास था कि आप सत्याग्रह की मदद से अपनी लड़ाई अहिंसा के द्वारा जीत सकते हैं।
प्रश्न 3: निम्नलिखित पर अखबार के लिए रिपोर्ट लिखें:
(a) जलियाँवाला बाग हत्याकांड
उत्तर: अमृतसर, 13 अप्रैल 1919: आज जलियाँवाला बाग में बड़ा ही दर्दनाक हादसा हो गया। बाग में बैसाखी के मेले में आये हजारों निर्दोष लोगों पर अंग्रेजी जेनरल डायर ने गोली चलाने के आदेश दिये। कोई भी बचकर भागने न पाये इसके लिए बाहर जाने के सभी रास्ते बंद कर दिये गये थे। इस नृशंस गोलीकांड में कई लोग मारे गये और उनसे कई गुना अधिक घायल हो गये। पूरा देश इस दुर्घटना से सकते में आ गया है।
(b) साइमन कमिशन
उत्तर: लंदन 1928: भारत में संवैधानिक सिस्टम की कार्यप्रणाली को सुचारु करने के लिए अंग्रेजी सरकार ने साइमन कमीशन का गठन किया है। ऐसा कहा गया है कि यह कमीशन भारत के संवैधानिक प्रणाली का अध्ययन करेगा और उसमें बड़े बदलाव लाने का प्रस्ताव रखेगा। लेकिन भारत के मामले में फैसला लेने के लिए बने इस कमीशन की सबसे बड़ी विडंबना है इस कमीशन में एक भी भारतीय का न होना। इसलिए कांग्रेस और अन्य दल ने इस कमिशन का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है।
प्रश्न 4: इस अध्याय में दी गई भारत माता की छवि और अध्याय 1 में दी गई जर्मेनिया की छवि की तुलना कीजिए।
उत्तर: भारत माता की छवि और जर्मेनिया की छवि में जो समानता है वह है मातृभूमि को एक महिला के रूप में दिखाना। दोनों तस्वीरों में महिला को पारंपरिक परिधानों से सजाया गया है तथा उनके हाथों में कुछ रूपक दर्शाए गये हैं। ये रूपक स्वतंत्रता, उदारवाद, शांति और ऊर्जा के प्रतीक हैं।
प्रश्न 5: 1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल होने वाले सभी सामाजिक समूहों की सूची बनाइए। इसके बाद उनमें से किन्हीं तीन को चुन कर उनकी आशाओं और संघर्षों के बारे में लिखए हुए यह दर्शाइए कि वे आंदोलन में शामिल क्यों हुए।
उत्तर: असहयोग आंदोलन में किसान, आदिवासी, बागान मजदूर, छात्र, वकील, सरकारी कर्मचारी, महिलाएँ, आदि शामिल हुई थीं। इनमे से तीन का विवरण नीचे दिया गया है:
किसान: तालुकदार और जमींदार अधिक मालगुजारी की मांगी कर रहे थे। किसानों से बेगारी करवाई जा रही थी। इन सबके विरोध में किसान उठ खडे हुए थे। किसानों चाहते थे कि मालगुजारी कम हो, बेगार समाप्त हो और कठोर जमींदारों का सामाजिक बहिष्कार हो।
आदिवासी: महात्मा गाँधी के स्वराज का आदिवासी किसानों ने अपने ही ढ़ंग से मतलब निकाला था। जंगल से संबंधित नये कानून बने थे। ये कानून आदिवासी किसानों को जंगल में पशु चराने, तथा वहाँ से फल और लकड़ियाँ लेने से रोक रहे थे। इस प्रकार जंगल के नये कानून किसानों की आजीविका के लिये खतरा बन चुके थे। आदिवासी किसानों को सड़क निर्माण में बेगार करने के लिये बाध्य किया जाता था। आदिवासी क्षेत्रों में कई विद्रोही हिंसक भी हो गये। कई बार अंग्रेजी अफसरों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध भी हुए।
बागान मजदूर: चाय बागानों में काम करने वाले मजदूरों की स्थिति खराब थी। इंडियन एमिग्रेशन ऐक्ट 1859 के अनुसार, बागान मजदूरों को बिना अनुमति के बागान छोड़कर जाना मना था। असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर कई मजदूरों ने अधिकारियों की बात मानने से इंकार कर दिया। वे बागानों को छोड़कर अपने घरों की तरफ चल पड़े। लेकिन रेलवे और स्टीमर की हड़ताल के कारण वे बीच में ही फंस गए, जिससे उन्हें कई मुसीबतें झेलनी पड़ीं। पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया और बुरी तरह पीटा।
प्रश्न 6: नमक यात्रा की चर्चा करते हुए स्पष्ट करें कि यह उपनिवेशवाद के खिलाफ प्रतिरोध का एक असरदार प्रतीक था।
उत्तर: नमक यात्रा: 12 मार्च 1930 को गांधी जी दांडी मार्च या नमक आंदोलन शुरु किया। उनके साथ 78 विश्वस्त अनुयायी शामिल थे। महात्मा गांधी और उनके अनुयायी 24 दिनों तक पैदल चले और साबरमती से दांडी तक की 240 मील की दूरी तय की। रास्ते में कई अन्य लोग उनके साथ हो लिए। 6 अप्रैल 1930 को गाँधीजी ने मुट्ठी भर नमक उठाकर प्रतीकात्मक रूप से इस कानून को तोड़ा।
नमक एक शक्तिशाली प्रतीक था जिसे हर व्यक्ति से जोड़ा जा सकता था। नमक का इस्तेमाल हर तबके का आदमी समान रूप से करता है। ऐसा नहीं है कि अमीर आदमी अधिक नमक खायेगा और गरीब कम नमक खायेगा। किसी उद्योगपति या व्यवसायी के लिए यह उम्मीद जगती थी कि कई अन्य कर समाप्त हो सकते थे जिनसे व्यवसाय प्रभावित हो रहा था। किसी आम आदमी के लिए नमक कर समाप्त होने से नमक की कीमत में गिरावट की उम्मीद जगती थी।
प्रश्न 7: कल्पना कीजिए कि आप सिविल नाफरमानी आंदोलन में हिस्सा लेने वाली महिला हैं। बताइए कि इस अनुभव का आपके जीवन में क्या अर्थ होता।
उत्तर: पारंपरिक तौर पर एक महिला की भूमिका घर चलाने की मानी जाती है। लेकिन असहयोग आंदोलन में भाग लेकर मैं राष्ट्र निर्माण में भागीदारी कर सकूंगी। यह मेरे लिए किसी प्रोत्साहन से कम नहीं होगा। मेरी ड्यूटी थी लाठी चार्ज में घायल व्यक्तियों की सेवा करना। ऐसा करने से मेरा हृदय उल्लास से भर गया। ऐसा लग रहा था कि अपने काम के जरिये मैं गांधीजी के बड़े लक्ष्य में अपना योगदान कर रही थी।
प्रश्न 8: राजनीतिक नेता पृथक निर्वाचिका के सवाल पर क्यों बँटे हुए थे?
उत्तर: मुस्लिम लीग के नेता मानते थे कि मुसलमानों का भविष्य हिंदू बहुल देश में सुरक्षित रखने के लिए पृथक निर्वाचिका की जरूरत थी। वह अपने समुदाय के लोगों के लिए बेहतर राजनैतिक शक्ति की इच्छा रखते थे। भारत में दलितों के उत्पीड़न का लंबा इतिहास रहा है। इसलिए दलितों के नेताओं को आशंका थी की सवर्णों के हाथ में सत्ता आने से दलितों की स्थिति और भी खराब होगी। इसलिए वे दलितों के लिए पृथक निर्वाचिका की मांग कर रहे थे। लेकिन गांधीजी का मानना था कि पृथक निर्वाचिका मुसलमानों और दलितों को मुख्य धारा से दूर ले जायेगी। इसलिए राजनीतिक नेता पृथक निर्वाचिका के सवाल पर बँटे हुए थे।
The making of global world
भूमंडलीकृत विश्व
NCERT Solution
प्रश्न 1: निम्नलिखित की व्याख्या करें:
(a) ब्रिटेन की महिला कामगारों ने स्पिनिंग जेनी मशीनों पर हमले किये।
उत्तर: ब्रिटेन में हथकरघा पर काम करने वालों में महिलाएँ बहुतायत में थीं। स्पिनिंग जेनी के आने से उन्हें अपना रोजगार छिन जाने का भय सता रहा था। इसलिए ब्रिटेन की महिला कामगारों ने स्पिनिंग जेनी मशीनों पर हमले किये।
(b) सत्रहवीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के सौदागर गाँवों में किसानों और कारीगरों से काम करवाने लगे।
उत्तर: उस जमाने में शहरों में दस्तकारी और व्यापारिक गिल्ड बहुत शक्तिशाली होते थे। इसलिए नये व्यापारियों को शहर में काम करने का मौका नहीं मिल पाता था। ऐसे व्यापारी गांवों के लोगों से उत्पादन करवाते थे और फिर उत्पाद को उपभोक्ताओं तक पहुँचाते थे। उसी दौरान खुले खेत खत्म हो रहे थे और कॉमंस की बाड़ाबंदी की जा रही थी। किसानों के पास इतनी उपज नहीं थी कि परिवार का पेट भर सकें। इसलिए किसान आसानी से नये व्यापारियों के लिए काम करने को राजी हो गये। वे काम करने के साथ अपने खेत और अपने परिवार पर भी ध्यान दे पाते थे।
(c) सूरत बंदरगाह अठारहवीं सदी के अंत तक हाशिये पर पहुँच गया था।
उत्तर: अठारहवीं सदी के अंत तक राजनैतिक सत्ता मिलने के कारण ईस्ट इंडिया कम्पनी ने व्यापार पर अपनी पकड़ बनाना शुरु कर दिया। इसके परिणामस्वरूप व्यापार के पुराने केंद्र बरबार होने लगे और नये केंद्रों का उदय होने लगा। इसलिए सूरत बंदरगाह उस समय तक हाशिये पर पहुँच गया।
(d) ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत में बुनकरों पर निगरानी रखने के लिए गुमाश्तों को नियुक्त किया था।
उत्तर: राजनैतिक प्रभुता स्थापित करने के बाद ईस्ट इंडिया कम्पनी ने व्यापार पर अपने एकाधिकार को जताना शुरु कर दिया। कम्पनी ने कपड़ा व्यवसाय में संलग्न पारंपरिक व्यापारियों और दलालों को किनारे करना शुरु किया। फिर कम्पनी ने बुनकरों पर सीधा नियंत्रण बनाने के उद्देश्य से लोगों को वेतन पर रखना शुरु किया। ऐसे लोगों को गुमाश्ता कहा जाता था, जिनका काम था बुनकरों पर निगरानी रखना, माल का संग्रहण करना और कपड़े की क्वालिटी की जाँच करना।
प्रश्न 2: प्रत्येक के आगे ‘सही’ या ‘गलत’ लिखें:
- उन्नीसवीं सदी के आखिर में यूरोप की कुल श्रम शक्ति का 80 प्रतिशत तकनीकी रूप से विकसित औद्योगिक क्षेत्र में काम कर रहा था।
- अठारहवीं सदी तक महीन कपड़े के अंतर्राष्ट्रीय बाजार पर भारत का दबदबा था।
- अमेरिकी गृहयुद्ध के फलस्वरूप भारत के कपास निर्यात में कमी आई।
- फ्लाई शटल के आने से हथकरघा कामगारों की उत्पादकता में सुधार हुआ।
उत्तर: (a) गलत, (b) सही, (c) गलत, (d) सही
प्रश्न 3: पूर्व औद्योगीकरण का मतलब बताएँ।
उत्तर: प्रारंभिक फैक्ट्रियों के शुरु होने के समय से ही लोग औद्योगीकरण की शुरुआत मानते हैं। लेकिन औद्योगीकरण की शुरुआत से ठीक पहले भी इंग्लैंड में अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिये बड़े पैमाने पर उत्पादन होता था। बड़े पैमाने पर उत्पादन के उस काल को आदि-औद्योगीकरण का काल कहते हैं।
प्रश्न 4: उन्नीसवीं सदी के यूरोप में कुछ उद्योगपति मशीनों की बजाय हाथ से काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता क्यों देते थे?
उत्तर: शुरु में मशीनें उतनी कार्यकुशल नहीं थीं जितना कि उनके आविष्कारक दावा करते थे। मशीनों की मरम्मत करना भी महंगा साबित होता था। इसलिए कोई भी उद्योगपति नई मशीनों में निवेश करने से कतराता था। श्रमिकों की कोई कमी नहीं थी, इसलिए मजदूरी दर भी कम थी। इसलिए व्यवसायी और उद्योगपति श्रमिकों से काम लेना ही बेहार समझते थे।
प्रश्न 5: ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारतीय बुनकरों से सूती और रेशमी कपड़े की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए क्या किया?
उत्तर: कम्पनी ने बुनकरों पर सीधा नियंत्रण बनाने के उद्देश्य से लोगों को वेतन पर रखना शुरु किया। ऐसे लोगों को गुमाश्ता कहा जाता था, जिनका काम था बुनकरों पर निगरानी रखना, माल का संग्रहण करना और कपड़े की क्वालिटी की जाँच करना। बुनकरों को अग्रिम कर्ज दिया जाता था। जो बुनकर कर्ज लेता था वह किसी दूसरे ग्राहक को अपना माल नहीं बेच सकता था। गुमाश्ता बाहरी आदमी होता था जिसका गाँव में कोई नातेदार रिश्तेदार नहीं होता था। वह अपने सिपाहियों और चपरासियों के दम पर हेकड़ी दिखाता था और जरूरत पड़ने पर बुनकरों की पिटाई भी करता था।
प्रश्न 6: पहले विश्व युद्ध के समय भारत का औद्योगिक उत्पादन क्यों बढ़ा?
उत्तर: प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन की मिलों में सेना की जरूरत के हिसाब से उत्पादन हो रहा था। इससे भारत में ब्रिटेन से आने वाला आयात घट गया था और भारत की मिलों के लिए घरेलू बाजार तैयार हो चुका था। भारत की मिलों में ब्रिटिश सेना के लिए भी सामान बनने लगे। इससे उद्योग धंधे में वृद्धि हुई।
10th class Bihar board notes
प्रिंट कल्चर और आधुनिक दुनिया
मुद्रण की शुरुआत
- मुद्रण का विकास सबसे पहले चीन मे हुआ।
- चीन में 594 इसवी के बाद से ही लकड़ी के ब्लॉक या तख्ती पर स्याही लगाकर उससे कागज पर प्रिंटिंग की जाती थी।
- उस जमाने में कागज पतले और छेददार होते थे, जिनपर दोनों तरफ छपाई करना संभव नहीं था।
- इसलिए कागज को एकॉर्डियन की तरह मोड़कर सिल दिया जाता था।
- चीन में सिविल सर्विस परीक्षा द्वारा लोगों की बहाली होती थी। इस परीक्षा में शामिल होने वाले उम्मीदवारों के लिए भारी मात्रा में पठन सामग्री छापी जाती थी।
- पढ़ने के शौकीन लोगों के लिये कहानी, कविताएँ, जीवनी, आत्मकथा नाटक, आदि भी छपने लगे।
- अमीर वर्ग की महिलाओं में पढ़ने का शौक बढ़ने लगा और कई महिलाओं ने कविताएँ और कहानियाँ भी लिखीं।
जापान में प्रिंट
- मुद्रण की तकनीक को बौद्ध धर्म के प्रचारकों द्वारा जापान लाया गया।
- जापान की सबसे पुरानी किताब है बौद्ध धर्म की किताब डायमंड सूत्र था।
यूरोप में प्रिंट का आना
- महान खोजी मार्को पोलो जब 1295 में चीन से मार्को पोलो लौटा तो अपने साथ वुडब्लॉक वाली छपाई की जानकारी लेकर आया।
- उसके बाद मुद्रण का इस्तेमाल यूरोप के अन्य भागों में भी फैल गया
- पंद्रह सदी के शुरुआत तक यूरोप में तरह तरह के सामानों पर छपाई करने के लिए वुडब्लॉक मुद्रण का जमकर इस्तेमाल होने लगा। इसके परिणामस्वरूप हाथ से लिखी हुई किताबें लगभग गायब ही हो गईं।
गुटेनबर्ग का प्रिंटिंग प्रेस
- ग़ुटेनबर्ग ने 1430 के दशक में प्रिंटिंग प्रेस इजाद करके इस क्षेत्र में क्रांति ला दी।
- गुटेनबर्ग के पास हर वह जरूरी ज्ञान और अनुभव था जिसका इस्तेमाल करके मुद्रण तकनीक को और बेहतर बनाया जा सकता था।
इसका असर यह हुआ कि पंद्रहवीं सदी के उत्तरार्ध्र में यूरोप के बाजारों में लगभग 2 करोड़ किताबें छापी गईं। सत्रहवीं सदी में यह संख्या बढ़कर 20 करोड़ हो गई।
मुद्रण क्राँति और उसके प्रभाव
पाठकों का एक नया वर्ग
- मुद्रण तकनीक ने पाठकों के एक नये वर्ग को जन्म दिया।
- मुद्रण की मदद से किसी किताब की आसानी से अनेक कॉपी बनाई जा सकती थी, इसलिए किताबें सस्ती होने लगीं। इसके परिणामस्वरूप किताबें अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचने लगीं।
- जनसाधारण तक किताबें पहुँचने से पढ़ने की एक नई संस्कृति का विकास हुआ।
- जिन्हें पढ़ना नहीं आता था उन्हें पढ़े लिखे लोग पढ़कर कहानियाँ सुनाया
- साक्षरता बढ़ने के साथ ही लोगों में पढ़ने का जुनून पैदा हो गया।
- किताबें बेचने के लिए किताब की दुकान वाले अकसर फेरीवालों को रखते थे, जो गाँवों में घूम घूम कर किताबें बेचा करते थे।
- पत्रिकाएँ, उपन्यास, पंचांग, आदि सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबें थीं।करते थे।
- मुद्रण के आने से नये तरह के बहस और विवाद को अवसर मिलने लगे।
- लोग धर्म के कुछ स्थापित मान्यताओं पर सवाल उठाने लगे।
- रुढ़िवादी लोगों को लगता था कि इससे पुरानी व्यवस्था के लिए चुनौती खड़ी हो रही थी।
- जब मार्टिन लूथर किंग ने रोमन कैथोलिक कुरीतियों की आलोचना करते हुए अपनी किताब छापी तो इससे ईसाई धर्म की प्रोटेस्टैंट क्राँति की शुरुआत हुई।
- जब लोग धार्मिक मान्यताओं पर सवाल उठाने लगे तो इससे रोम के चर्च को परेशानी होने लगी।
- चर्च ने प्रतिबंधित किताबों की लिस्ट भी रखनी शुरु कर दी।
मुद्रण और फ्रांसीसी क्राँति
- कई इतिहासकारों का मानना है कि मुद्रण संस्कृति से ऐसा माहौल तैयार हुआ जिसके परिणामस्वरूप फ्रांसीसी क्राँति की शुरुआत हुई।
उन्नीसवीं सदी
- उन्नीसवीं सदी में यूरोप में साक्षरता में जबरदस्त वृद्धि होने के कारण पाठकों का एक ऐसा नया वर्ग उभरा जिसमें बच्चे, महिलाएँ और मजदूर शामिल थे।
- उन्नीसवीं सदी के अंत में ऑफसेट प्रिंटिंग विकसित हो चुका था, जिससे छ: रंगों में छपाई की जा सकती थी।
- बिजली से चलने वाले प्रेस भी इस्तेमाल में आने लगे, जिससे छपाई के काम में तेजी आ गई।
भारत में मुद्रण की दुनिया
- मुद्रण तकनीक के आने से पहले भारत में हस्तलिखित किताबों की पुरानी परंपरा रही है।
- इन किताबों को ताड़ के पत्तों या हाथ से बने कागज पर लिखा जाता था।
- लेकिन पांडुलिपी तैयार करने में बहुत मेहनत और समय लगता था। इसलिए ये किताबें आम जनमानस की पहुँच से दूर होती थीं।
- भारत में प्रिंटिंग प्रेस को सबसे पहले सोलहवीं सदी के मध्य में पुर्तगाली धर्मप्रचारक लेकर आये थे।
- भारत में छपने वाली पहली किताबें कोंकणी भाषा में थी।
- तमिल भाषा की पहली पुस्तक कैथोलिक पादरियों द्वारा कोचीन में 1759 में छापी गई। कैथोलिक पादरियों ने मलयालय भाषा की पहली पुस्तक को 1713 में छापा था।
- राजा राममोहन रॉय के करीबी रहे गंगाधर भट्टाचार्य ने बंगाल गैजेट के नाम से पहला भारतीय अखबार निकालना शुरु किया।
- उत्तरी भारत के उलेमाओं ने सस्ते लिथोग्राफी प्रेस का इस्तेमाल करते हुए धर्मग्रंथों के उर्दू और फारसी अनुवाद छापने शुरु किये। उन्होंने धार्मिक अखबार और गुटके भी निकाले।
प्रिंट और सेंसर
पहले तक उपनिवेशी शासक सेंसर को लेकर बहुत गंभीर नहीं थे।
शुरु में जो भी थोड़े बहुत नियंत्रण लगाये जाते थे वे भारत में रहने वाले उन अंग्रेजों पर लगाये जाते थे जो कम्पनी के कुशासन की आलोचना करते थे।
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857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजी शासकों का रवैया बदलने लगा। आइरिस प्रेस ऐक्ट की तर्ज पर भारत में 1878 में वर्नाकुलर प्रेस ऐक्ट पारित किया गया। इस कानून के अनुसार सरकार समाचार और संपादकीय पर सेंसर लगा सकती थी। यदि कोई अखबार सरकार के खिलाफ लिखता तो उसे पहले चेतावनी दी जाती थी। यदि चेतावनी का असर नहीं होता था तो प्रेस को बंद कर दिया जाता था और प्रिंटिंग प्रेस को जब्त कर लिया जाता था।- इस कानून के अनुसार सरकार समाचार और संपादकीय पर सेंसर लगा सकती थी। यदि कोई अखबार सरकार के खिलाफ लिखता तो उसे पहले चेतावनी दी जाती थी। यदि चेतावनी का असर नहीं होता था तो प्रेस को बंद कर दिया जाता था और प्रिंटिंग प्रेस को जब्त कर लिया जाता था।
NCERT Solution
प्रश्न 1: निम्नलिखित के कारण दें:
(a) वुडब्लॉक प्रिंट या तख्ती की छ्पाई यूरोप में 1295 के बाद आई।
उत्तर: वुडब्लॉक प्रिंट मशहूर इतालवी खोजी मार्को पोलो द्वारा 1295 में यूरोप पहुँचा।
(b) मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था और उसने इसकी खुलेआम प्रशंसा की।
उत्तर: मुद्रण की मदद से मार्टिन लूथर अपने विचारों को जनसाधारण तक पहुँचा पाये थे। इसलिए मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था और उसने इसकी खुलेआम प्रशंसा की।
(c) रोमन कैथलिक चर्च ने सोलहवीं सदी के मध्य से प्रतिबंधित किताबों की सूची रखनी शुरु कर दी।
उत्तर: मुद्रण के कारण धर्म की व्याख्या बदलने लगी जिससे रोमन कैथोलिक चर्च की शक्ति खतरे में आने लगी। इसकी रोकथाम करने के लिए रोमन कैथलिक चर्च ने सोलहवीं सदी के मध्य से प्रतिबंधित किताबों की सूची रखनी शुरु कर दी।
(d) महात्मा गांधी ने कहा कि स्वराज की लड़ाई दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस, और सामूहिकता के लिए लड़ाई है।
उत्तर: मुद्रण ने देश में राष्ट्रवाद की भावना के प्रसार में अहम योगदान दिया था। महात्मा गांधी और कई अन्य राजनेता अखबारों और पत्रिकाओं के माध्यम से भी लोगों तक अपनी बात पहुँचाते थे। इसलिए गांधी जी ने कहा कि स्वराज की लड़ाई दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस, और सामूहिकता के लिए लड़ाई है।
प्रश्न 2: छोटी टिप्पणी में इनके बारे में बताएँ:
(a) गुटेनबर्ग प्रेस
उत्तर: योहान ग़ुटेनबर्ग ने 1430 के दशक में प्रिंटिंग प्रेस इजाद करके इस क्षेत्र में क्रांति ला दी। गुटेनबर्ग को आधुनिक प्रिटिंग तकनीक का जनक माना जाता है। गुटेनबर्ग के पास हर वह जरूरी ज्ञान और अनुभव था जिसका इस्तेमाल करके मुद्रण तकनीक को और बेहतर बनाया जा सकता था। उसने जैतून पेरने की मशीन की तर्ज पर अपने प्रिंटिंग प्रेस का मॉडल बनाया। अपने साँचों का इस्तेमाल करके गुटेनबर्ग ने छापने के लिए अक्षर बनाये। 1448 इसवी तक गुटेनबर्ग का प्रिंटिंग प्रेस काफी कारगर बन चुका था। उसने अपने प्रेस में सबसे पहले बाइबिल को छापा।
(b) छपी किताब को लेकर इरैस्मस के विचार
उत्तर: इरैस्मस उन रुढ़िवादी व्यक्तियों में से थे जिन्हें मुद्रण से होने वाले फायदों से डर लगता था। उन्हें लगता था कि बौद्धिक ज्ञान की अस्मिता के लिये किताबों का छपना खतरनाक था। उन्हें लगता था कि इससे बाजार में घटिया किताबों की बाढ़ आ जायेगी जिससे लोगों और समाज को नुकसान ही होगा।
(c) वर्नाकुलर या देसी प्रेस एक्ट
उत्तर: आइरिस प्रेस ऐक्ट की तर्ज पर भारत में 1878 में वर्नाकुलर प्रेस ऐक्ट पारित किया गया। इस कानून के अनुसार सरकार समाचार और संपादकीय पर सेंसर लगा सकती थी। यदि कोई अखबार सरकार के खिलाफ लिखता तो उसे पहले चेतावनी दी जाती थी। यदि चेतावनी का असर नहीं होता था तो प्रेस को बंद कर दिया जाता था और प्रिंटिंग प्रेस को जब्त कर लिया जाता था।
प्रश्न 3: उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था:
(a) महिलाएँ
उत्तर: महिलाओं की स्थिति खराब थी और उन्हें कई काम करने की मनाही थी। महिलाओं के जीवन और संवेदनाओं पर कई लेखकों ने लिखना शुरु किया, जिससे मध्यम वर्ग की महिलाओं में पढ़ने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी। कई उदारवादी पुरुषों ने महिला शिक्षा पर बल देना शुरु किया। कुछ उदारवादी पुरुष अपने घर की महिलाओं के लिए घर में शिक्षा की व्यवस्था करवाते थे। रुढ़िवादी हिंदू और मुसलमान स्त्री शिक्षा के धुर विरोधी थे। ऐसे लोगों को लगता था कि शिक्षा से लड़कियों के दिमाग पर बुरा असर पड़ेगा। ऐसे लोग अपनी बेटियों को धार्मिक ग्रंथ पढ़ने की अनुमति तो देते थे लेकिन अन्य साहित्य पढ़ने से मना करते थे। लेकिन मुद्रण तकनीक के कारण भारत में भी कई महिला लेखिकाओं ने लिखना शुरु कर दिया।
(b) गरीब जनता
उत्तर: उन्नीसवीं सदी में मद्रास के शहरों में सस्ती और छोटी किताबें आ चुकी थीं, जिन्हें चौराहों पर बेचा जाता था ताकि गरीब लोग भी उन्हें खरीद सकें। बीसवीं सदी के शुरुआत से सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना के परिणामस्वरूप लोगों तक किताबों की पहुँच बढ़ने लगी। कई अमीर लोग अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के उद्देश्य से पुस्तकालय बनाने लगे। गरीब तबके के लोग भी पाठक बन गये और उनमें से कुछ लेखक भी बन गये।
(c) सुधारक
उत्तर: मुद्रण तकनीक ने समाज सुधारकों की बहुत मदद की। मुद्रण के आने से चिंतकों के नये विचार आसानी से जनसाधारण तक पहुँचने लगे। इससे एक नये तरह के संवाद और वाद-विवाद की संस्कृति का जन्म हुआ। इससे कई पुरानी मान्यताओं को तोड़ने का अवसर मिला।
प्रश्न 4: अठारहवीं सदी के यूरोप में कुछ लोगों को क्यों ऐसा लगता था कि मुद्रण संस्कृति से निरंकुशवाद का अंत, और ज्ञानोदय होगा?
उत्तर: मुद्रण के कारण ज्ञानोदय के चिंतकों के विचार लोकप्रिय हुए। इन चिंतकों ने परंपरा, अंधविश्वास और निरंकुशवाद की कड़ी आलोचना की। वॉल्तेअर और रूसो को ज्ञानोदय का अग्रणी विचारक माना जाता है। मुद्रण के कारण संवाद और वाद-विवाद की नई संस्कृति का जन्म हुआ। अब आम आदमी भी मूल्यों, संस्थाओं और प्रचलनों पर विवाद करने लगा और स्थापित मान्यताओं पर सवाल उठाने लगा। इससे कुछ लोगों को लगने लगा कि मुद्रण संस्कृति से निरंकुशवाद का अंत, और ज्ञानोदय होगा।
प्रश्न 5: कुछ लोग किताबों की सुलभता को लेकर चिंतित क्यों थे? यूरोप और भारत से एक एक उदाहरण लेकर समझाएँ।
उत्तर: जब मार्टिन लूथर ने धर्म के बारे में अपने नये विचार पेश किये तो इससे रोमन कैथोलिक चर्च को लगने लगा कि उसकी शक्ति क्षीण पड़ जायेगी। इसलिए चर्च किताबों की सुलभता को लेकर चिंतित था।
भारत के रुढ़िवादी हिंदुओं और मुस्लिमों को लगता था कि पढ़ने से लड़कियों का दिमाग खराब हो जायेगा इसलिए उन्हें पढ़ने लिखने से दूर ही रहना चाहिए। वे इतना चाहते थे कि उनके घर की बेटियाँ केवल धार्मिक किताबें पढ़ें।
प्रश्न 6: उन्नीसवीं सदी में भारत में गरीब जनता पर मुद्रण संस्कृति का क्या असर हुआ?
उत्तर: उन्नीसवीं सदी में किताबें सस्ती हो चुकी थीं और छोटी किताबें भी छपने लगीं थीं। इन किताबों को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने के उद्देश्य से चौराहों पर बेचा जाता था। कई स्थानों पर पुस्तकालय भी खुले ताकि लोग आसानी से किताब पढ़ सकें। इससे गरीब वर्ग के लोगों को भी किताबें पढ़ने का मौका मिला और अपना ज्ञान बढ़ाने का मौका मिला। इसका असर यह हुआ कि गरीब तबके से भी कई लोग लेखक बन गये।
प्रश्न 7: मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में क्या मदद की?
उत्तर: मुद्रण संस्कृति के आने से संवाद और वाद-विवाद की नई संस्कृति का विकास हुआ। अब समाज सुधारक और राजनेता अपने विचारों को अखबारों और पत्रिकाओं के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचा सकते थे। गांधी जी नियमित रूप से अखबारों में लिखा करते थे। राष्ट्रवादी आंदोलन के प्रचार प्रसार के लिये पोस्टर और पर्चियाँ अधिक संख्या में छापना संभव हो पाया था। अब देश के एक कोने के लोग देश के दूसरे कोने के समाचार के बारे में आसानी से जान लेते थे। इस प्रकार मुद्रण संस्कृति नें भारत में राष्ट्रवाद के विकास में मदद की।